एक जैसी डाइट हर किसी के लिए फायदेमंद नहीं - how herbs.
एक जैसी डाइट हर किसी के लिए फायदेमंद नहीं
यहां तक कि जुड़वा लोगों तक के लिए समान आहर अनुकूल नहीं
जरूरी नहीं है कि किसी खास किस्म का आहार हर व्यक्ति के लिए फायदेमंद होगा। वर्षों की रिसर्च से पता लगा है एक जैसी डाइट लेने वाले व्यक्तियों के लिए नतीजे अलग-अलग हो सकते हैं ।एक नई रिसर्च ने दर्शाया है कि दो व्यक्तियों में एक जैसे भोजन को पचाने की प्रक्रिया (मेटाबोलिज्म )पूरी तरह भिन्न रहती है। यहां तक कि एक समान डीएनए के जुड़वा लोगों में भी ऐसा होता है ।जेनेटिक विशेषज्ञ टीम स्पेक्टर कहते हैं ,जहां तक डाइट का मामला है हर आहार सभी लोगों के लिए फिट नहीं है ।स्पेक्टर की न्यूट्रिशन कंपनी जेड ओई ने इस रिसर्च में पैसा लगाया।
पेन स्टेट यूनिवर्सिटी में न्यूट्रिशन पर रिसर्च कर रहे प्रोफेसर जैक हूय्वेल का कहना है ,एकदम सही पर्सनलाइज्ड डाइट हासिल करना बहुत कठिन है। पर्सनलाइज्ड न्यूट्रीशन एकदम नया मामला नहीं है। इसे कंपनियों ने बनाना शुरू कर दिया है ।जींस, बॉयोमार्कर के आधार पर आहार की सलाह देने के लिए कंजूमर के टेस्ट होते हैं। पिछले दशक के से फूड और जींस के अंतर संबंधों की स्टडी की साइंस न्यूट्री- जीनोमिक्स के माध्यम से उपयुक्त डाइट की तलाश हो रही है। शोधकर्ता खाने के जेनेटिक संबंधों से जुड़ी परिस्थितियों जैसे लेक्टोस से नुकसान, पाचन से जुड़ी बीमारी सीलिएक और मेटाबोलिक दोषों से आगे जाकर काम कर रहे हैं ।उन्होंने मोटापा और वजन बढ़ाने, घटाने वाले फूड के प्रभाव के जेनेटिक संबंधों की खोज की है ।
वैसे कुछ अध्ययन न्यूट्री जिनोमिक के निष्कर्षों पर सवाल उठाते हैं। जुड़वा बच्चों पर जेडओई की ताजा स्टडी से पता लगा है कि जींस से तय नहीं होता है कि किसी आहार के प्रति किसी व्यक्ति की क्या प्रतिक्रिया रहती है। इससे पहले 2018 में एक प्रमुख स्टडी में पाया गया कि जेनेटिक मार्कर नहीं बता सकते कि कौन सी डाइट किस व्यक्ति के लिए फिट है। दरअसल ,जींस अकेले काम नहीं करते हैं ।वह वातावरण से लेकर क्या आप स्मोकिंग करते हैं और आप क्या खाते हैं जैसे पहलुओं पर निर्भर करते हैं ।वर्जिनियां टेक्नोलॉजी में न्यूट्रिशन के एसोसिएट प्रोफेसर डेबोराह गुड कहते हैं, दूसरे व्यक्ति की तुलना में आपके वातावरण और हालात पर निर्भर करता है कि फूड के प्रति आपकी क्या प्रतिक्रिया है। यह हालात फूड के प्रभाव में अंतर करते हैं। इसके अलावा पेट के बैक्टीरिया हमारे स्वास्थ्य के हर पहलू को प्रभावित करते हैं ।यह प्रक्रिया मेटाबोलोंमिक्स और माइक्रोबॉयोम है।
कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी में न्यूट्रिशन की असिस्टेंट प्रोफेसर अंगेला जीकोविक कहती है, चूंकि न्यूट्रीशन और अच्छे आहार की जरूरत आपके स्वास्थ्य ,आयु, सक्रियता और मौसम पर निर्भर करती है इसलिए स्थायी परफेक्ट डाइट का आईडिया दूर की बात है। लोगों को स्वयं अपनी डाइट तय करनी चाहिए। इसके लिए शरीर पर अलग-अलग फूड की प्रतिक्रिया के हिसाब से निर्णय लिया जा सकता है।
वैसे कुछ अध्ययन न्यूट्री जिनोमिक के निष्कर्षों पर सवाल उठाते हैं। जुड़वा बच्चों पर जेडओई की ताजा स्टडी से पता लगा है कि जींस से तय नहीं होता है कि किसी आहार के प्रति किसी व्यक्ति की क्या प्रतिक्रिया रहती है। इससे पहले 2018 में एक प्रमुख स्टडी में पाया गया कि जेनेटिक मार्कर नहीं बता सकते कि कौन सी डाइट किस व्यक्ति के लिए फिट है। दरअसल ,जींस अकेले काम नहीं करते हैं ।वह वातावरण से लेकर क्या आप स्मोकिंग करते हैं और आप क्या खाते हैं जैसे पहलुओं पर निर्भर करते हैं ।वर्जिनियां टेक्नोलॉजी में न्यूट्रिशन के एसोसिएट प्रोफेसर डेबोराह गुड कहते हैं, दूसरे व्यक्ति की तुलना में आपके वातावरण और हालात पर निर्भर करता है कि फूड के प्रति आपकी क्या प्रतिक्रिया है। यह हालात फूड के प्रभाव में अंतर करते हैं। इसके अलावा पेट के बैक्टीरिया हमारे स्वास्थ्य के हर पहलू को प्रभावित करते हैं ।यह प्रक्रिया मेटाबोलोंमिक्स और माइक्रोबॉयोम है।
कैलिफ़ोर्निया यूनिवर्सिटी में न्यूट्रिशन की असिस्टेंट प्रोफेसर अंगेला जीकोविक कहती है, चूंकि न्यूट्रीशन और अच्छे आहार की जरूरत आपके स्वास्थ्य ,आयु, सक्रियता और मौसम पर निर्भर करती है इसलिए स्थायी परफेक्ट डाइट का आईडिया दूर की बात है। लोगों को स्वयं अपनी डाइट तय करनी चाहिए। इसके लिए शरीर पर अलग-अलग फूड की प्रतिक्रिया के हिसाब से निर्णय लिया जा सकता है।
सही फूड से बीमारियों का खतरा कम होता है
माइक्रोबॉयोम की रिसर्च बताती है ,पेट के बैक्टीरिया को सही फूड देने से कुछ लाइलाज बीमारियों का खतरा कम हो सकता है ।आपका वजन कम हो सकता है ।यह भी पता लगता है कि जो डाइट आपके पड़ोसी के लिए फायदेमंद है ।वह आपको सुस्त और ढीला महसूस कराता है। यदि आपके पेट में अलग किस्म के बैक्टीरिया है तो वे उसी फूड को भिन्न तरीके से प्रोसेस करेंगे। उसकी शारीरिक प्रतिक्रिया अलग होगी। मोटे लोगों के माइक्रोबॉयोम पतले लोगों से अलग होते हैं।
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